काला महीना शुरू होते ही आखिर क्यों मायके भेजी जाती है नई नवेली दुल्हन

हिमाचल के कई जिलों में सावन का महिना खत्म होते और भादप्रद शुरू होते ही काला महीना भी शुरू हो जाता है। देश में इस महीने का भले ही कोई महत्व न हो, लेकिन हिमाचल में इसका बेहद खास महत्व है। नई नवेली दुल्हन को शादी के पहले साल इस महीने मायके में 30 दिन रहना पड़ता है।

हिमाचल के सोलन, सिरमौर, कांगड़ा, बिलासपुर, हमीरपुर समेत कई जिलों में इसे काफी माना जाता है। इस महीने नई नवेली दुल्हन को ससुराल से विदा कर मायके के लिए भेजा जाता है। करीब एक महीना दुल्हन को अपने मायके में ही गुजारना पड़ता है।

भले ही शादी को चंद दिन हुुए हों या फिर कई महीने, अगस्त में काला महीना शुरू होते ही दुल्हन को सुसराल के लोग मायके छोड़ आते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

बुजुर्गों की मानें तो इस महीने सास और बहु एक दूसरे का चेहरा नहीं देख सकते। इसे अशुभ माना जाता है। कई जिलों में तो ऐसी मान्यता है कि सास बहु यदि इस महीने एक दूसरे का चेहरा न देखें तो उनके संबंध जीवन भर मधुर रहते हैं।

यदि काला महीना में दुल्हन मायके नहीं जाती तो उसे पूरा महीना घूंघट में भी रहना पड़ता है ताकि वह सास का चेहरा न देख सके। कई लोग मानते हैं कि ससुराल पक्ष को इससे फायदा होता है। सास बहु और ससुर दामाद यदि एक दूसरे का चेहरा इस महीने देख लें तो कलह बढ़ती है।

इसका वैज्ञानिक आधार कोई नहीं है लेकिन ‌हिमाचल के ‌कई जिलों में आज भी इसे माना जाता है। हालांकि, नई पीढ़ी अब इसे ज्यादा नहीं मानती, लेकिन बुजुर्गों के कहने पर अक्सर लोग इसे निभाते नजर आते हैं।

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